नई पीढ़ी व पाश्चात्य का मार्गदर्शन करने में सक्षम होगा यह ग्रंथ : नरेंद्र सिंह तोमर

दिव्यता व भव्यता के साथ ‘प्रभु प्रसादम’ का विमोचन
वर्तमान परिवेश में सनातन को जानना अत्यंत आवश्यक : श्रीधर पराड़कर
समाज निर्माण के लिए सावत होगा ग्रंथ : जगदीश तोमर
ग्वालियर। वर्तमान परिवेश में नई पीढ़ी को अपनी पुरातन संस्कृति से परिचित करवाना समाज की नैतिक जिम्मेदारी है। पिछली तीन पीढ़ियों को लम्बे कालखंड से यही सिखाया जा रहा है कि धर्म से विज्ञान बड़ा है, ऐसे में नई पीढ़ी को सनातन धर्म से परिचित कराने की महती आवश्यकता है। यह बात अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर ने कही। श्री पराड़कर शुक्रवार को यहां ‘चेतना मंच ‘ द्वारा आयोजित आध्यात्मिक चिंतक सुरेन्द्र सिंह परिहार ‘रामांशु ‘ द्वारा लिखित ग्रन्थ ‘प्रभु प्रसादम ‘ के लोकार्पण कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। अपने अध्यक्ष भाषण में श्री पराड़कर ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी समक्ष पुरातन संस्कृति की अस्मिता का संकट खड़ा हो गया है। इस संकट से पार ले जाने में समाज के प्रबुद्धजीवियों को आगे आकर इस नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करना होगा। ‘प्रभु प्रसादम’ के रूप में यह ग्रन्थ पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाएगा। उन्होंने पुस्तक पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि सनातन संस्कृति के बारे में जितने भी आगम -निगम, वेद, पुराण, उपनिषद, धर्मग्रन्थ, टीकायें हैं सबकी जानकारी इसमें उपलब्ध है। बड़ी बात यह है क़ि पुरातन संस्कृति के आलावा इतिहास, भूगोल की भी इसमें विस्तार से जानकारी दी गई है। उन्होंने कहा कि समाज के द्वारा सनातन धर्म के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है लेकिन समय आ गया है कि इसके बारे में जाना जाए। लोकार्पण कार्यक्रम में मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, मुंशी प्रेमचंद सृजन पीठ उज्जैन के पूर्व निदेशक व वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश तोमर भी उपस्थित थे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नरेंद्र सिंह तोमर ने सुरेन्द्र सिंह परिहार द्वारा लिखित ग्रन्थ को कई मायने में उपयोगी बताया। श्री तोमर ने आश्चर्य जताया कि गणित का शिक्षक कैसे साहित्य की सुंदर कृति का सृजन कर सकता है। अपने छात्र जीवन को याद करते हुए श्री तोमर ने कहा कि भौतिक विज्ञान एवं गणित ही ऐसे विषय हैं जिनमें छात्र कमजोर रहते हैं। इन विषयों के शिक्षकों का अनुशासन भी उदाहरण हुआ करता था। लेकिन गणित विषय का जानकार समाज का मार्गदर्शक भी हो सकता है यह श्री सुरेन्द्र सिंह परिहार ने करके दिखाया है। यह उनके अध्यन व चिंतन की परिणति है। उन्होंने कहा वर्तमान परवेश में हमें अपने धर्म संस्कृति जानना अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान परवेश में भौतिकता चरम पर पहुंच गई है, पढ़ना लिखना काम होता जा रहा है। पहले लोग संगीत, साहित्य व आध्यात्मिक क्षेत्र में रुचि रखते थे। लेकिन मोबाइल ने नई पीढ़ी को इन सब चीजों से दूर कर दिया है।
मुख्य वक्ता के रूप में मुंशी प्रेमचंद सृजन पीठ उज्जैन के पूर्व निदेशक व वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश तोमर ने ग्रन्थ को महाग्रन्थ बताते हुए कहा कि कहा कि मैं इस ग्रंथ के आकार और स्वरूप व वजन को देखकर हथप्रभ हूं।
विस्तार से चर्चा की इससे पहले सुरेन्द्र सिंह कुशवाह ने ग्रन्थ के बारे में विस्तार से चर्चा की। ‘चेतना मंच’ के अध्यक्ष दीपक तोमर ने कार्यक्रम की रुपरेखा प्रस्तुत की। सुरेंद्र परिहार ने बताया कि इस ग्रंथ को लिखने के लिए तैयार हुए। उन्होंने बताया कि जून 1994 में एक बेनामी पुस्तक उनके हाथ लगी। जिसे पढ़कर इस ग्रन्थ के बारे में संकल्प बना। तबसे अनवरत साधना होती रही। फ़िर ग्रन्थ तैयार होने में ढाई वर्ष लग गए। इससे पहले माँ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्प अर्जित कर दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। सभागार में बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन व नागरिक उपस्थित थे।
ये रहे साथ अतिथियों का स्वागत संस्था के अध्यक्ष दीपक तोमर, संरक्षक बृजेश यादव, लेखक सुरेन्द्र सिंह परिहार, अमरसिंह परिहार, अजय सिंह परिहार, सुरेंद्र कुशवाह, मूलचंद रसैनिया आदि ने किया।स्वागत भाषण दीपक तोमर ने दिया तथा संचालन ब्रिज किशोर दीक्षित ने किया।